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कारगिल विजय दिवस:”तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर आऊंगा”

Kargil Vijay Diwas: "Will come after waving the tricolor or I will come wrapped in the tricolor"
Kargil Vijay Diwas: "Will come after waving the tricolor or I will come wrapped in the tricolor"

नई दिल्ली, 26 जुलाई: भारत आज मंगवार को कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर अपनी जीत के 23 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है। कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा जब्त की गई कई पर्वत ऊंचाइयों को फिर से हासिल करने में शहीद नायकों के सर्वोच्च बलिदान और वीरता को इस दिन सलाम है। 26 जुलाई 1999 को ऑपरेशन विजय का सफल हुआ। हर साल 26 जुलाई को देश भर में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारतीय सेना ने द्रास में कारगिल युद्ध स्मारक में 23वां कारगिल विजय दिवस भी मनाया। कारगिल विजय दिवस की बात तो और कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें कारगिल का हीरो भी कहा जाता है, उनकी बात ना हो ऐसा हो नहीं सकता। कारगिल पर जाने से पहले उन्होंने अपने परिवार वालों को कहा था, ‘तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर आऊगा’।

कौन थे कैप्टन विक्रम बत्रा

हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के पास घुग्गर गांव में 9 सितंबर 1974 को जन्मे कैप्टन विक्रम बत्रा मिडिल क्लास परिवार से संबंध रखते थे। वह अपने सहपाठियों और शिक्षकों के बीच बेहद लोकप्रिय थे और स्कूल में एक ऑलराउंडर थे। उन्हें बचपन से ही खेल-कूद और स्कूल के अन्य गतिविधियों में भाग लेना पसंद था। कैप्टन विक्रम कराटे में ग्रीन बेल्ट धारक थे और राष्ट्रीय स्तर पर टेबल टेनिस खेलते थे।

सेना में भर्ती होने के इच्छुक थे

Capt. Vikram Batra

बचपन से ही सेना में भर्ती होना चाहते थे विक्रम बत्रा कैप्टन विक्रम बत्रा बचपन से ही देशभक्त थे और हमेशा सेना में भर्ती होने के इच्छुक थे। उन्होंने 1995 में स्नातक की डिग्री पूरी करने के बाद संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस) परीक्षा की तैयारी शुरू की थी। 1996 में, उनका सपना तब पूरा हुआ जब उन्होंने सीडीएस परीक्षा पास की और भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल हो गए जहां उन्हें लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया था। विक्रम बत्रा को उत्तर भारत के सर्वश्रेष्ठ एनसीसी कैडेट (एयर विंग) से सम्मानित किया गया था।

कारगिल युद्ध के दौरान विक्रम को मिला था प्रमोशन

Capt. Vikram Batra

कैप्टन विक्रम बत्रा को 1996 में मानेकशॉ बटालियन की जेसोर कंपनी में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में शामिल होने के लिए चुना गया था और उन्हें 13 जेएके राइफल्स में शामिल किया गया था। बाद में उन्हें 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन के पद पर पदोन्नत किया गया था।

Capt. Vikram Batra

कारगिरल जंग के दौरान द्रास और बटालिक के उप-क्षेत्रों से, कैप्टन विक्रम बत्रा की डेल्टा कंपनी को 19 जून को सबसे कठिन और महत्वपूर्ण चोटियों में से एक चोटी 5140 पर फिर से कब्जा करने का आदेश दिया गया था। कारगिल जंग के दौरान विक्रम का कोड नेम था शेरशाह था। उन्होंने अपनी डेल्टा कंपनी के साथ पीछे से दुश्मनों पर हमला किया था। 17,000 फीट की ऊंचाई पर, कैप्टन बत्रा और उनके लोगों ने पीछे से पहाड़ी पर जाने की योजना बनाई, ताकि अपने दुश्मनों को आश्चर्यचकित कर सकें। वे चट्टान पर चढ़ गए, लेकिन जैसे ही वे शीर्ष के पास पहुंचे, पाकिस्तानी सैनिकों ने उनपर मशीनगनों से हमला किया था।

गोलियों की बौछार के बीच भी विचलित नहीं हुए विक्रम

Capt. Vikram batra

विक्रम पाकिस्तानियों सैनिकों द्वारा मशीनगनों से हो रही फायरिंग के बाद भी कैप्टन विक्रम बत्रा और उनके टीम के लोग विचलित नहीं हुए और र कैप्टन बत्रा और उनके पांच लोग ऊपर चढ़ गए। अकेले कैप्टन विक्रम बत्रा ने करीबी मुकाबले में तीन सैनिकों को मार गिराया और एक्सचेंज के दौरान बुरी तरह घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी टीम को फिर से इकट्ठा किया और मिशन को जारी रखा। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी टीम को अपने मिशन को पूरा करने के लिए प्रेरित किया। पॉइंट 5140 को 20 जून 1999 को सुबह 3:30 बजे कैप्चर किया गया था।

इसी दौरान 07 जुलाई 1999 को विक्रम बत्रा देश के लिए शहीद हो गए। उन्हें उनके साहस, दृढ़ संकल्प, नेतृत्व और सर्वोच्च बलिदान के लिए मरणोपरांत देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। आज उनकी शहीदी दिवस पर हर कोई उन्हें याद कर रहा है।

विक्रम बत्रा की प्रेमिका डिंपल चीमा की कहानी

जब बात विक्रम बत्रा के शौर्य और पराक्रम की हो, तो उनकी प्रेमिक के बलिदान को भी लोग नहीं भूल सकते हैं। हीर-रांझा और लैला-मजनू जैसी ही है विक्रम बत्रा और उनकी प्रेमिक डिंपल चीमा की कहानी। विक्रम बत्रा के शहीद होने के बाद उनकी प्रेमिका डिंपल चीमा ने आज तक शादी नहीं की है। वह अब भी कुंवारी हैं और पंजाब में एक शिक्षिका हैं।

कॉलेज में हुईं एक-दूसरे से मुलाकात और हुआ प्यार

विक्रम बत्रा और डिंपल चीमा की पहली मुलाकात पंजाब यूनिवर्सिटी के कॉलेज 1995 में हुई थी। पहली ही मुलाकात से दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे।

उस वक्त यह दोनों एमए अंग्रेजी में एडमिशन लिए थे। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, हम दोनों ही किसी कारण से अपना कोर्स पूरा नहीं कर पाए थे। आज भी जब मैं सोचती हूं तो लगता है कि नियति को कुछ और ही मंजूर था, वो हमें साथ लाने की कोशिश कर रहे थे”

जब विक्रम ने डिंपल का दुपट्टा

बता दें कि डिंपल ने कहा था कि हम दोनों अपने रिश्ते को लेकर बहुत ज्यादा सीरियस थे। डिंपल ने बताया था, ”हम दोनों हमेशा मंसा देवी मंदिर और गुरुद्वारा श्री नाडा साहिब जाते रहते थे। वहां एक दिन ऐसा हुआ था कि हम गुरुद्वारा में परिक्रमा कर रहे थे, वह मेरे पीछे-पीछे मेरा दुपट्टे पकड़ कर चल रहा था। जब हमारी परिक्रमा पूरी हुई तो, उसने मुझे कहा, ‘बधाई हो मिसेज बत्रा। पता भी हमने साथ में फेरे ले लिए… ये चौथी परिक्रमा है।”

विक्रम ने जब खून से भर दी थी डिंपल की मांग

जब विक्रम अपनी पोस्टिंग पर थे तो डिंपल के परिवार वाले उनपर शादी के लिए दबाव बना रहे थे। जब अपनी पोस्टिंग से विक्रम लौटे तो डिंपल ने उनको ये बात बताई। तो फौरन विक्रम ने फिल्मी स्टाइल में अपने पर्स से ब्लेड

जब विक्रम अपनी पोस्टिंग पर थे तो डिंपल के परिवार वाले उनपर शादी के लिए दबाव बना रहे थे। जब अपनी पोस्टिंग से विक्रम लौटे तो डिंपल ने उनको ये बात बताई। तो फौरन विक्रम ने फिल्मी स्टाइल में अपने पर्स से ब्लेड निकाला और अंगूठा काट कर डिंपल की मांग भर दी। डिंपल ने इस पल को याद करते हुए कहा था कि ”वो मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल था। मैं उसे देखते रह गई।”

कारगिल से आने के बाद होने वाली थी शादी, लेकिन तिरंगे में लिपटकर आए विक्रम

Dimple Cheema

डिंपल ने बताया था कि कारगिल के जंग पर जाने से पहले विक्रम ने कहा था कि वहां से आने के बाद हम शादी करेंगे। विक्रम ने अपने घर पर भी सबको ये बात बता दी थी कि वो डिंपल से शादी करना चाहते हैं। डिंपल इस उम्मीद में बैठी थी कि वह दुल्हन बनेंगी लेकिन विक्रम तिरंगे में लिपटकर आए। इसके बाद डिंपल ने आज तक शादी नहीं की है। उन्होंने विक्रम की याद में सारी जिंदगी बिताने का फैसला किया है।

उसके जाने के बाद मैंने कभी खुद को उससे अलग महसूस नहीं किया

डिंपल ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था, ” उसके जाने के बाद से आज तक ऐसा कोई भी दिन नहीं, जब मैंने खुद को उससे अलग महसूस किया हो। मुझे ऐसा लगता है कि वो किसी पोस्टिंग पर गया है। मैं जानती हूं कि मैं एक दिन कहीं उससे जरूर मिलने वाली हूं। मुझे उसपर गर्व है लेकिन दिल के कोने में अफसोस भी है, कि उसे मेरे साथ होना चाहिए था। वह खुद अपने शौर्य और वीरता की कहानी सुनाता।”

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