22 जुलाई, 1947 को भारत के राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगे’ को संविधान सभा में मान्यता दी गई। इसकी पहली रूपरेखा 1921 में पिंगली वेंकैया ने तैयार की थी। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा, जो देश के दो प्रमुख समुदायों का प्रतिनिधित्व करता था। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदायों का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए। चरखा दूसरी तरफ से देखने में उल्टा दिखता था, इसलिए इस पर आपत्ति थी।
तिरंगे की पहली कॉपी तैयार
17 जुलाई, 1947 को ‘फ्लैग कमेटी’ द्वारा बदरुद्दीन तैयबजी के बनाए डिजाइन को स्वीकृति मिली। इसके अनुसार तिरंगा खादी के कपड़े से ही बना होना चाहिए। इस तिरंगे की पहली कॉपी को बदरुद्दीन की पत्नी सुरैया तैयबजी ने तैयार किया था।

राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगा पहली बार फहराया गया
आजाद भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगा पहली बार ‘कौंसिल हाऊस’ यानी संसद भवन पर 15 अगस्त, 1947 को साढ़े 10 बजे फहराया गया।
चूंकि 15 अगस्त को ज्वाहरलाल नेहरू व अन्य नेता राज-काज के कामों में बहुत अधिक व्यस्त थे, इसलिए लाल किले पर नेहरू जी ने पहली बार 16 अगस्त को सुबह साढ़े 8 बजे तिरंगा फहराया था।
तिरंगे को पूर्व में 15 अगस्त एवं 26 जनवरी को छोड़ कर सार्वजनिक रूप से फहराने या प्रदर्शित करने का अधिकार नहीं होता था।
नवीन जिंदल ने 10 वर्षों तक लड़ी कानूनी लड़ाई
23 जनवरी, 2004 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि हर भारतीय राष्ट्र ध्वज को किसी भी दिन सम्मानपूर्वक फहरा सकता है। इस अधिकार के लिए नवीन जिंदल ने 10 वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ी थी।
